किताबो में सिमटी हुई थी जब अचानक हलके से कंधो को थपथपाया किसीने पीछे मुड़ के देखा तो देखा वक़्त मुस्कुरा रहा थादस्तक सा देकर ज़रा कुछ देर के लिए पीछे बुला रहा था
उंगलिया पकड़ के थमा दी माँ की उगलियों में मेरी
छुडा के जिसे दौड़ रही थी घर के आंगन में हमारी
माँ के एक हाथ मे लंबी छड़ी थी,
दुसरे मे खाने का निवाला जिसे छोड़
निडर बावरी जैसी भागे जा रही थी
वक़्त ने फिर खीच लिया
उस कमरे मे मुझे
जहां हाथों मे अखबार लिए पापा चाय की sip ले रहे थे
जब लिपट कर चहरे से उनके, खिलखिला रही थी महसूस कर रूखे रूखे दाढ़ी को उनकी
नन्ही सी जान के साथ अपनी वे भी मुस्कुरा रहे थे
समेट ही रही थी उन लम्हों को
कि वक़्त ने ले गिराया रेतों मे मुझे
जहां सहेलियों के साथ पुरे बदन में मिटटी सनाये रेतों के घर बना रही थी
घुप अंधेरो में टिमटिमाते तारों को निहार रही थी उन्ही रेतों मे लेटे
ठुड्डी को हाथों मे दबाये
वक़्त ने फिर ले बिठाया तेज़ सूरज के किरणों के नीचे
जब सर पर किसी कि मार से
अचानक लगा बालों को कस के पकड़े हुए था कोई
जाड़ों कि धुप मे दीदी
तेल कि बोतल लिए हुए
हाथों में
शायद
डांट सी रही थी चोटी बनाते हुए दिल्लागियों पे मेरे ताने सुना रही थी
दोनो चोटियों को उड़ाते हुए हवाओं में गुनगुनाते हुए साइकिल को खूब तेज़ चला रही थी
मुहल्ले में जाने कहा कहा रूक कर कर जंगली फूलों के रस चूस रही थी
फिर जाने क्या हुआ
नज़र धुंधला सी गयी मेरी
धुल समझ के जिसे आखों से निकाल रही थी
तो पाया गालों में ओस कि बूंदों कि तरह भीगे
लम्हे डबडबाती आखों से छलक रहे थे
खोजती आंखों ने खबर लेनी चाहि जब वक़्त कि
जो अब तक यु मुझे भगा रह था
तो देखा कि वक़्त बीत चूका था ...
आधे अधूरे सपनो के बीच छुपे दूर खड़े अब भी मुस्कुरा रहा था
दीवार पर सर टिकाए हुए
पलकों को झुकाया ज्यो ही
माँ कि छड़ी ,पापा कि दाढ़ी , डांट दीदी की
सर को मेरे अब भी तो सहला ही रही थी
11 comments:
परीय सोनाली, इतनी सरल होने के बाद भी येह कवीता मेरे दील को किहन छू गयी। मेरे को उन दीनो मे ले गयी जो किहन छूपे बैथे थे। उस वकत् का मुझे इनतेज़र रहेगा। किहन वोह वकत मीले तोह केहना, फ़ुरसत को साथ लेके आये।
Is hero kee hindi to dekho zara.. heheh sonuuu .. its so beautiful ... i dint knew tu itna accha hindi mein bhee likhti hai .. muaaaah mera chotuuu :D this is lovely :)
@ricky-awww.. sweetest comment eva:D :*
@pranshu-glad u liked it, n luv wid hindi..dates bak to the times when i used to spend hrs at bookstalls reading chacha chaudhari,pinky,naahrak etall till it wud b time for them to close teh shops:P (n ofcourse during train journeys as well)
but I want to learn it better..need to read more.
naahrak-naagraj!
Muaah on ur typos :P
hey sonali thanks for stoppin at my blog I read this poem some time back when pranshu forwardedd it to me and cant tell you how many childhood memories came rushing in to the brain.....the long hours of chupan chupai, the dance in the rains, excitement of sneaking comics and yes pinky was my favourite ;-)
Thx for making me reevisit those memories wth your poem
ashima
pranshu- hehe ;)
ashima-not a prob ashima, would love to read more of wht u write..
Accha usne fwd kiya tha, dint kno:)
n yeah..i kno..there are millions of memories we all preserve so lovingly in our hearts, they just crave for our attention sometimes;).
Pinky was the cutesttt :D those short miniskirt n sweet tops she wud wear,ab toh badi ho gayi hogi wo bhi:P
Hey!
Wow, thats an amazing write up! I simply loved your poem! Its amazing to see how well you can frame those thoughts, vivid snapshots in simple yet powerful words! And that too in hindi.. you have a fan in me for sure :)
I got to your blog through the SIMC blog, but i still don't know who you are?! :D
Will watch this space for more such stuff :)
Pinky.
@moments of truth- oye , lol, i dint intend to make tis blog public. but now tht u r here somehow;), guess who this is...lunchie!!n ofcourse i dun mind sharing things wid u..just be hushh:P
catch u on chat soon..
@ur comment-thx a tonne..its so imp to keep certain moments alive thru our individial ways of expressions..
-khamakhaa
loved it, loved it, loved it
loved it very much,
and,
it'll be a moment of celebration to have ur comment on my blog
see u soon :)
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